दीपक अधिकारी
हल्द्वानी
दिवाली का त्योहार कार्तिक अमावस्या पर मनाते है और इसके अगले दिन यानि कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है| गोवर्धन पूजा में घर के आंगन में गोबर से गोवर्धन बनाकर पूजा की जाती है| इस त्योहार का खास सम्बन्ध श्रीकृष्ण से है| इस पर्व की खास रौनक ब्रज क्षेत्र में रहती है| चलिए आपको गोवर्धन पूजा की तिथि, मुहूर्त और महत्व के बारे में बताते हैं|
शुभ मुहूर्त में गायों की पूजा
गोवर्धन पूजा की शुरुआत खुद भगवान श्री कृष्ण ने की थी| इस दिन प्रकृति के आधार पर्वत के रूप में गोवर्धन पर्वत की पूजा किए जाने की परंपरा है| साथ ही शुभ मुहूर्त में गायों की पूजा भी की जाती है | इस वर्ष इस पूजा के लिए विशेष संयोग बन रहे हैं। इस शुभ अवसर पर लोग विभिन्न विधियों से पूजा करते हैं,
विशेष संयोग और अमृत योग
हिन्दू धर्म में गोवर्धन पूजा का महत्व अत्यधिक है, और इस वर्ष इस पूजा के लिए विशेष संयोग बन रहे हैं। इस शुभ अवसर पर लोग विभिन्न विधियों से पूजा करते हैं, जिसमें गाय के गोबर से भगवान श्रीकृष्ण का चित्र बनाना प्रमुख है। इस चित्र की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है, और भगवान को प्रिय भोग अर्पित किए जाते हैं।
ज्योतिषियों के अनुसार, गोवर्धन पूजा के दिन अमृत योग (आयुष्मान योग) बन रहा है। इस योग के प्रभाव से पूजा करने वालों को चार गुना लाभ मिलता है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन किए गए कार्यों से साधक को सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। इसके साथ ही, सफलता प्राप्ति के लिए दान का महत्व भी बताया गया है।गोवर्धन पूजा का समय
इस वर्ष गोवर्धन पूजा 2 नवंबर 2024, शनिवार को मनाई जाएगी। इस दिन गोवर्धन पूजा का मुहूर्त शाम 6 बजकर 30 मिनट से लेकर 8 बजकर 45 मिनट तक रहेगा। यहां पूजा के विभिन्न मुहूर्त का विवरण दिया गया है:
प्रातःकाल मुहूर्त: सुबह 06:40 से 09:46 तक
विजय मुहूर्त: दोपहर 02:09 से 02:56 तक
संध्याकाल मुहूर्त: दोपहर 03:40 से 06:34 तक
गोधूलि मुहूर्त: शाम 06:05 से 06:30 तक
अमृत योग: सुबह 06:34 से रात 08:22 तक
गोवर्धन पूजा विधि
गोवर्धन पर्वत और मूर्ति निर्माण: सुबह गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत और भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति बनाएं।
सजावट: मूर्ति को फूलों और रंग से सजाएं और गोवर्धन पर्वत एवं भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करें।
भोग अर्पण: भगवान को फल, जल, दीपक, धूप और उपहार अर्पित करें। फिर कढ़ी और अन्नकूट चावल का भोग लगाएं।
अन्य पूजा: गाय, बैल और भगवान विश्वकर्मा की पूजा करें।
परिक्रमा: गोवर्धन पर्वत की सात बार परिक्रमा करें।
आरती और दान: जल लेकर मंत्र का जाप करें और आरती करके पूजा का समापन करें। गरीबों और जरूरतमंदों को कपड़े, अन्न, कंबल आदि दान करना न भूलें।
गोवर्धन पर्वत का पौराणिक महत्व
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार ब्रज में बहुत अधिक वर्षा होने के कारण पूरा गांव डूब की कगार पर आ गया था| तब भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को इंद्रदेव के क्रोध से भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर इंद्रदेव का घमंड तोड़ते हुए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाया| फिर सभी बृजवासी, पशु-पक्षी अपनी जान बचाने के लिए उसके नीचे आ गए थे| गोवर्धन पर्वत और श्रीकृष्ण की कृपा से गांव वासी बड़े संकट से बच गए, इसीलिए इस दिन से ही गोवर्धन पर्वत की पूजा करने की परंपरा का आरंभ हुआ|
गोवर्धन पूजा का महत्व
गोवर्धन पूजा में गायों की पूजा की जाती है| हिन्दू धर्म में गायों को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है| इसमें 33 कोटि देवी-देवताओं का वास माना गया है| मान्यता है, जो लोग गोवर्धन पूजा के दिन गाय की उपासना करते हैं, उन्हें मां लक्ष्मी का विशेष आशीर्वाद मिलता है| मां लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं, उसी प्रकार गौमाता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं| गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही ये दिन बहुत जरुरी माना गया है|