दीपक अधिकारी
हल्द्वानी
नैनीताल/देहरादून –
देहरादून के बहुचर्चित अनुपमा गुलाटी हत्याकांड में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को सही ठहराते हुए आरोपी पति राजेश गुलाटी की आजीवन कारावास की सजा बरकरार रखी है। बुधवार को हुई सुनवाई में हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह अपराध अत्यंत जघन्य और अमानवीय श्रेणी का है, जिसमें किसी प्रकार की रियायत का कोई आधार नहीं बनता नैनीताल हाईकोर्ट में वरिष्ठ न्यायमूर्ति रविंद्र मैठाणी और न्यायमूर्ति आलोक माहरा की खंडपीठ ने राजेश गुलाटी द्वारा दायर अपील को खारिज करते हुए कहा कि निचली अदालत द्वारा दिया गया निर्णय कानून और साक्ष्यों के अनुरूप है।
72 टुकड़ों में की गई थी निर्मम हत्या
मामला 17 अक्टूबर 2010 का है, जब राजेश गुलाटी ने अपनी पत्नी अनुपमा गुलाटी की नृशंस हत्या कर शव के 72 टुकड़े किए और उन्हें डीप फ्रीजर में छिपाकर रख दिया। यह घटना सामने तब आई, जब दिसंबर 2010 में अनुपमा से संपर्क न हो पाने पर उसका भाई दिल्ली से देहरादून पहुंचा। पूछताछ में राजेश के लगातार झूठ बोलने पर शक गहराया और पुलिस ने उसके घर की तलाशी ली तलाशी के दौरान डीप फ्रीजर में पॉलीथीन में लिपटे मानव अंग बरामद हुए, जो जांच में अनुपमा गुलाटी के ही पाए गए। इसके बाद अनुपमा के भाई की तहरीर पर मुकदमा दर्ज हुआ और राजेश गुलाटी को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया। इस सनसनीखेज मामले में आरोपी को उस समय ‘नरपिशाच’ तक कहा गया था।निचली अदालत का फैसला और हाईकोर्ट की मुहर देहरादून की निचली अदालत ने 1 सितंबर 2017 को राजेश गुलाटी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी, साथ ही 15 लाख रुपये का अर्थदंड भी लगाया था। अदालत ने निर्देश दिए थे कि 70 हजार रुपये राजकीय कोष में और शेष राशि अनुपमा के बच्चों के बालिग होने तक बैंक में जमा कराई जाए। अदालत ने इस अपराध को अत्यंत क्रूर और समाज को झकझोर देने वाला माना था राजेश गुलाटी ने इसी फैसले को चुनौती देते हुए 2017 में हाईकोर्ट में अपील दायर की थी, जिसे अब खारिज कर दिया गया है।
लव मैरिज से खौफनाक अंत तक
राजेश गुलाटी पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर था और उसने 1999 में अनुपमा गुलाटी से प्रेम विवाह किया था। लेकिन वर्षों बाद यह रिश्ता एक ऐसे खौफनाक अंजाम तक पहुंचा, जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था।



