
दीपक अधिकारी

हल्द्वानी
आमतौर पर पेड़-पौधे अपना भोजन मिट्टी से लेते हैं. इनकी जड़ें मिट्टी से पोषक तत्वों को अवशोषित करती हैं. इसके बाद पत्तियां प्रकाश संश्लेषण यानी फोटोसिंथेसिस की प्रक्रिया से भोजन बनाती हैं. इसके विपरीत मांसाहारी पौधों की जड़ें उन्हें मिट्टी में जमाए रखती हैं, तो इनकी पत्तियां भोजन नहीं बनातीं. खुद को जिंदा रखने और आवश्यक पोषक तत्वों के लिए ये पौधे कीड़े-मकोड़ों का शिकार करते हैं. इस तरह कीटों से नाइट्रोजन और प्रोटीन लेकर अपना जीवन चलाते हैं हल्द्वानी के वन अनुसंधान केंद्र में कीट भक्षी पौधे: आप बहुत से ऐसे पेड़ पौधे और वनस्पतियों के नाम जानते होंगे, जो मिट्टी, पानी और खाद से ऊर्जा लेकर अपने आप को विकसित करते हैं. लेकिन वनस्पतियों में कुछ ऐसी भी वनस्पतियां भी हैं, जो कीट पतंगों, छोटे जीव जंतुओं को अपना निवाला बनाकर अपने आप को विकसित करती हैं. इन वनस्पतियों को कीट भक्षी वनस्पति कहा जाता है.नाइट्रोजन की कमी वाली जमीन पर उगते हैं कीट भक्षी पौधे: उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र हल्द्वानी में कीट भक्षी वनस्पतियों को संरक्षित करने का काम कर रहा है, जिससे कि इन वनस्पतियों के अस्तित्व को बचाया जा सके. वन संरक्षक, उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि-वन अनुसंधान केंद्र जैव विविधता और विलुप्त प्रजातियों की वनस्पतियों और पेड़-पौधों को संरक्षित करने का कार्य कर रहा है. जैव-विविधता के अध्ययन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए कीट भक्षी पौधों के उद्यान की स्थापना की है. इसका लक्ष्य कीट भक्षी पौधों के अस्तित्व को बचाना है. कीट भक्षी पौधे ऐसे पौधे होते हैं, जो कीटों और अन्य छोटे जीवों को फंसाकर या खाकर अपना पोषण प्राप्त करते हैं. ये पौधे नाइट्रोजन की कमी वाली मिट्टी में उगते हैं और कीड़ों को पचाकर नाइट्रोजन प्राप्त करते हैं.
-संजीव चतुर्वेदी, वन संरक्षक, वन अनुसंधान केंद्र-
सबसे बुद्धिमान हैं कीट भक्षी पौधे: कीट भक्षी पौधों को दुनिया का सबसे बुद्धिमान पौधा माना जाता है. इनकी पत्तियां छोटी-छोटी, लाल रंग की ग्रंथि युक्त स्पर्शकों से ढकी होती हैं. ये स्पर्शक (Tentacle) कीड़ों को आकर्षित करते हैं और फिर उन्हें फंसा लेते हैं. इनकी पत्तियां एक सुराही जैसे आकार की होती हैं. वन अनुसंधान केंद्र ने पर्यावरण संरक्षण और लोगों ने इन पौधों को लेकर जागरूकता फैलाने के साथ ही छात्रों के अध्ययन के लिए कीट भक्षी पौधों का उद्यान बनाया है.संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्र में कुछ कीटभक्षी पौधों का प्राकृतिक आवास है, जहां ये प्रजातियां गीले, दलदली और अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाई जाती हैं. यहां की मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी के कारण ये पौधे कीटों पर निर्भर रहते हैं. उन्होंने बताया कि-अनुसंधान केंद्र में कीटभक्षी पौधे नेपेंथेस की 65 प्रजातियां हैं जो कीटों को खाकर अपनी नाइट्रोजन व अन्य न्यूट्रिशन की आवश्यकता पूरी करते हैं. यह पहल न केवल वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा देगी, बल्कि पर्यावरण जागरूकता और प्राकृतिक संतुलन को समझने में भी महत्वपूर्ण योगदान देगी. कीटभक्षी पौधे जिन्हें मांसाहारी पौधे भी कहा जाता है, अपनी अनूठी विशेषता के लिए जाने जाते हैं ये पौधे मिट्टी में पोषक तत्वों, विशेष रूप से नाइट्रोजन की कमी को पूरा करने के लिए कीटों को फंसाकर पचाते हैं.
-संजीव चतुर्वेदी, वन संरक्षक, वन अनुसंधान केंद्र-
कीट भक्षी पौधा उद्यान से होगा ये फायदा: अनुसंधान केंद्र में तैयार कीट भक्षी उद्यान से नई पीढ़ी को प्रकृति के प्रति संवेदनशील बनाने और जैव-विविधता के संरक्षण में मदद मिलेगी. केंद्र में कीटभक्षी पौधों के व्यवहार के अध्ययन के साथ पारिस्थितिक महत्व, उनके अनुकूलन और पर्यावरण पर प्रभाव का गहन अध्ययन किया जा रहा है. केंद्र के भ्रमण पर आईं शोधार्थी रश्मि ने बताया कि-
हमने कक्षा 11वीं और 12 वीं में कीट भक्षी पौधों के बारे में पढ़ा था. आज उन पौधों को साक्षात अपने सामने देखना रोमांचक अनुभव रहा है. वन अनुसंधान केंद्र की ये पहल छात्रों और शोधार्थियों को अलग अनुभव प्रदान करेगी.
-रश्मि, शोधार्थी-
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