

दीपक अधिकारी

हल्द्वानी
नैनीताल में विदेशी सेबों की डिमांड के कारण स्थानीय सेबों की मांग घट चुकी है. इससे काश्तकार काफी परेशान हैं.
हल्द्वानी: कुमाऊं मंडल के नैनीताल और अल्मोड़ा जिलों में बड़े पैमाने पर सेब की बागवानी की जाती है. लेकिन मौसम परिवर्तन के असर से पहाड़ के सेब की पहचान अब धीरे-धीरे खत्म हो रही है. यही कारण है कि मंडियों में विदेशी सेबों ने जगह बना ली है. जिस कारण पहाड़ के सेब की डिमांड कम हो रही है. इससे पहाड़ के किसानों के चेहरे पर मायूसी देखी जा रही है मंडी व्यापारियों की मानें तो अमेरिका, तुर्की और ईरान से आने वाले सस्ते और स्वादिष्ट सेब ने नैनीताल जिले के रामगढ़ के सेब का स्वाद बिगाड़ दिया है. बड़े स्तर पर विदेशी सेब की आवक से स्थानीय उत्पादकों की स्थिति खराब हो चुकी है. पहले मौसम की मार और अब विदेशी सेब से व्यापार प्रभावित हो गया है. सेब की खेती में लगातार घाटा होने से मजबूर उत्पादक अब बागवानी से ही मुंह मोड़ने लगे हैं. यही नहीं, बागवान सरकार पर भी बागवानी किसानों को उनके उत्पादन का समर्थन मूल्य नहीं देने का आरोप लगा रहे हैं. पहाड़ के किसानों को अपने उत्पादन की ग्रेडिंग भी मिल नहीं पा रही है. इस कारण उनको सेब के दाम नहीं मिल पा रहे.बारिश और ओलावृष्टि ने खराब की सेब की फसल: कश्मीर और हिमाचल के बाद सेब उत्पादन में उत्तराखंड का नाम आता है. नैनीताल, अल्मोड़ा, उत्तरकाशी समेत कई जिलों में बड़े स्तर पर सेब का उत्पादन किया जा रहा है. लेकिन बारिश, ओलावृष्टि आदि के चलते सेब की गुणवत्ता खराब हो गई है. मौसम की मार के कारण पिछले कई सालों से बागवानी काश्तकारों को नुकसान हो रहा है. वहीं विदेशी सेब के आयात ने भी सेब काश्तकारों की कमर तोड़ दी है. विदेशी सेब आकार में बड़े, सुर्ख लाल रंग के होने से ग्राहक की पहली पसंद बन रहे हैं. विदेशी सेब बाजारों में 120 रुपए प्रति किलो से 200 रुपए प्रति किलो तक बिक रहा है.
200 रुपए प्रति पेटी पहाड़ी सेब:
बागवानी काश्तकार ललित कुमार ने बताया कि मौसम की मार के कारण पहाड़ के सेब की फसल खराब हो चुकी है. यही नहीं, फसल के लिए कोई ग्रेडिंग व्यवस्था नहीं है. जिस कारण काश्तकार अपने उत्पादन को अलग-अलग दामों में नहीं बेच पाते हैं. मंडियों में भी पहाड़ के सेब की डिमांड नहीं है. वर्तमान समय में पहाड़ के सेब की कीमत 200 रुपए प्रति पेटी बिक रहा है. एक पेटी में 10 किलो सेब आता है. इस हिसाब से स्थानीय सेब पर सिर्फ 20 रुपए किलो मिल पा रहे हैं. इसके कारण किसानों को भारी नुकसान हो रहा है.
समर्थन मूल्य घोषित करने की मांग: फल आढ़ती
एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष जीवन सिंह कार्की ने बताया कि विदेशी सेब ने बाजारों में अपना कब्जा जमा लिया है. पहाड़ के सेब की क्वालिटी नहीं होने के कारण बाहर की मंडियों में डिमांड नहीं है. जिस कारण किसानों को अपने उत्पादन का दाम नहीं मिल पा रहा है. सरकार को पहाड़ के सेब का समर्थन मूल्य घोषित कर इसकी खरीद करनी चाहिए. जिससे कि पहाड़ के बागवानी काश्तकारों को अपने उत्पादन का दाम मिल सके.







